शिक्षाप्रद कहानियों का संग्रह | हिंदी कहानी संग्रह कथा स्टोरी Short Motivational Stories in Hindi

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Hindi short stories with moral for Kids 2022: बचपन मे सुनी हुई कहानियों का हमारे जीवन मे बहुत प्रभाव डालती है। यह ना सिर्फ हमे नए जानकारी प्रदान करती है बल्कि हमारी अच्छे चरित्र निर्माण मे सहायक होती है.

Short stories for kids in hindi
Short stories for kids in hindi

बचपन मे सुनी हुई अच्छी Moral stories for hindi के द्वारा बच्चों की आदतों एवं कई नवीनतम जंकारिया भी सिखाती है । कहानिया बच्चों के आलाव बड़ों को भी पसंद आती है । बड़े लोग अपने खाली व्यक्त मे कोई भी short stories in hindi या Long Stories in hindi मे पढ़ कर अपने समय का सदुपयोग कर सकते है ।

प्रेरणादायक हिंदी motivational story in hindi in 2022 कहानियों का बहुत ही महत्व है । अगर आप किसी दुविधा मे फसे है और आपका मन तनाव ग्रस्त है उस समय आप किसी अच्छी कहानी को पढ़कर अपना ध्यान हटा सकते है और उससे सिख ले सकते है । आप बच्चों को story in hindi for kids भी story in hindi with moral प्रेरणादायक कहानी सुना कर उनको अच्छे कार्य जैसे की परीक्षा की तैयारी, खेल कूद मे अच्छा परिणाम पाने के लिए उदाहरण के तौर पर सुना सकते है ।

भारत मे बहुत से ऐसे बहुत ही प्रसिद्ध कहानीकार हुए है जिनकी कहानिया बहुत ही रोचक एवं शिक्षाप्रद रही है । जैसे की Rabindranath Tagore ,Munshi Prem Chand short stories,Mahadevi Verma short stories एवं अन्य की कहानिया इंटरनेट पर सर्च करके पढ़ सकते है ।

कहानिया कितने प्रकार की होती है ?

वैसे तो हम सब ने प्रेरणादायक कहानियों के बारे मे बहुत हुन होगा । आज आइये अब जानते है कहानिया कितने प्रकार की होती है ? What are the types of stories in hindi ?

  1. घटना प्रधान कहानी
  2. धार्मिक कहानियाँ
  3. ऐतिहासिक कहानियाँ
  4. सामाजिक कहानियाँ
  5. यर्थाथवादी कहानियाँ
  6. आदर्शवादी कहानियाँ
  7. घटना प्रधान कहानियाँ
  8. चरित्र प्रधान कहानियाँ
  9. समस्यात्मक कहानियाँ
  10. वातावरण प्रधान कहानिया
  11. भावनात्मक कहानिया

Short Stories in Hindi for Kids (2022):नीचे कुछ Short Stories of Hindi लिखी गई है जिसको पढ़कर बच्चे और बड़े शिक्षाप्रद और प्रेरणात्मक कहानियों के बारे मे जानकार उनका आनंद ले सकते है । इनका प्रकार Short Inspirational Stories in Hindi है ।

आइये अब 100 शिक्षाप्रद और प्रेरणात्मक कहानियों के बारे मे जानते है । 100 Short stories in Hindi | 100 Long Stories in Hindi

1. मनुष्य का सबसे बड़ा एवं मूल्यवान धन | Short Hindi Story with Moral

Hindi short thoughts for student 2022:जैसे की हम जानते है की मनुष्य की जरूरत रोटी, कपड़ा और मकान के सबसे पहले रहती है इन कमी को पूरा होने के बाद मनुष्य अन्य चीजों के बारे मे सोचता है । लेकिन अगर एक राजा की बात की जाए तब उसके लिए ये सारी चीजे उपलब्ध रहती है । लेकिन अगर राजा किसी मुसीबत मे पड़ जाए तब ये धन दौलत किसी कम का नहीं है । आज के Short story with knowledge मे हम यही जानेंगे की सबसे बाद धन क्या होता है ।

एक बार की बात है एक शक्तिशाली राजा शिकार खेलने के लिए एक घने वन में शिकार खेल रहा था। मौसम खराब होने के कारण अचानक आकाश में बादल छा गए और मूसलाधार वर्षा होने लगी। कुछ देर मे सूर्य अस्त हो गया और धीरे-धीरे अँधेरा छाने लगा। अँधेरा होने के कारण राजा अपने नगर जाने का रास्ता भूल गया और अपने सिपाहियों से अलग हो गया। कुछ देर मे राज्य को भूख प्यास और थकावट से व्याकुल हो गया एवं राजा जंगल के किनारे एक टीले पर बैठ गया।

थोड़ी देर बाद उसने वहाँ तीन बालकों को देखा। तीनों बालक अच्छे मित्र थे। वे गाँव की ओर जा रहे थे। सुनो बच्चों! ‘जरा यहाँ आओ।’ राजा ने उन्हें बुलाया। बालक जब वहाँ पहुंचे तो राजा ने उनसे पूछा – ‘क्या कहीं से थोड़ा भोजन और जल मिलेगा?’ मैं बहुत प्यासा हूँ और भूख भी बहुत लगी है।

बालकों ने उत्तर दिया – ‘अवश्य ‘। हम घर जा कर अभी कुछ ले आते है। वे गाँव की ओर भागे और तुरंत जल और भोजन ले आये। राजा बच्चों के उत्साह और प्रेम को देखकर बहुत प्रसन्न हुआ।

राजा बोला – “प्यारे बच्चों! तुम लोग जीवन में क्या करना चाहते हो? मैं तुम सब की सहायता करना चाहता हूँ।”

कुछ देर सोचने के बाद एक बालक बोला – ‘ मुझे धन चाहिए। मैंने कभी दो समय की रोटी नहीं खायी है। कभी सुन्दर वस्त्र नहीं पहने है इसलिए मुझे केवल धन चाहिए। राजा मुस्कुरा कर बोले – ठीक है। मैं तुम्हें इतना धन दूँगा कि जीवन भर सुखी रहोगे। यह शब्द सुनते ही बालकों की ख़ुशी का ठिकाना न रहा।

दूसरे बालक ने बड़े उत्साह से पूछा – “क्या आप मुझे एक बड़ा-सा बँगला और घोड़ागाड़ी देंगे?’ राजा ने कहा – अगर तुम्हे यही चाहिए तो तुम्हारी इच्छा भी पूरी हो जाएगी।

तीसरे बालक ने कहा – “मुझे न धन चाहिए न ही बंगला-गाड़ी। मुझे तो आप ऐसा आशीर्वाद दीजिए जिससे मैं पढ़-लिखकर विद्वान बन सकूँ और शिक्षा समाप्त होने पर मैं अपने देश की सेवा कर सकूँ। तीसरे बालक की इच्छा सुनकर राजा बहुत प्रभावित हुआ। उसने उसके लिए उत्तम शिक्षा का प्रबंध किया। वह परिश्रमी बालक था इसलिए दिन-रात एक करके उसने पढाई की और बहुत बड़ा विद्वान बन गया और समय आने पर राजा ने उसे अपने राज्य में मंत्री पद पर नियुक्त कर लिया।

एक दिन अचानक राजा को वर्षों पहले घटी उस घटना की याद आई। उन्होंने मंत्री से कहा, ” वर्षों पहले तुम्हारे साथ जो दो और बालक थे, अब उनका क्या हाल-चाल है… मैं चाहता हूँ की एक बार फिर मैं एक साथ तुम तीनो से मिलूं, अतः कल अपने उन दोनों मित्रों को भोजन पर आमंत्रित कर लो।”

मंत्री ने दोनों को संदेशा भिजवा दिया और अगले दिन सभी एक साथ राजा के सामने उपस्थित हो गए।

‘आज तुम तीनो को एक बार फिर साथ देखकर मैं बहुत प्रसन्न हूँ। इनके बारे में तो मैं जानता हूँ…पर तुम दोनों अपने बारे में बताओ। “, राजा ने मंत्री के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।

जिस बालक ने धन माँगा था वह दुखी होते हुए बोला, “राजा साहब, मैंने उस दिन आपसे धन मांग कर बड़ी गलती की। इतना सारा धन पाकर मैं आलसी बन गया और बहुत सारा धन बेकार की चीजों में खर्च कर दिया, मेरा बहुत सा धन चोरी भी हो गया ….और कुछ एक वर्षों में ही मैं वापस उसी स्थिति में पहुँच गया जिसमे आपने मुझे देखा था।”

बंगला-गाडी मांगने वाले बालक भी अपना रोना रोने लगा, ” महाराज, मैं बड़े ठाट से अपने बंगले में रह रहा था, पर वर्षों पहले आई बाढ़ में मेरा सबकुछ बर्वाद हो गया और मैं भी अपने पहले जैसी स्थिति में पहुँच गया।

उनकी बातें सुनने के बाद राजा बोले, ” इस बात को अच्छी तरह गाँठ बाँध लो धन-संपदा सदा हमारे पास नहीं रहते पर ज्ञान जीवन-भर मनुष्य के काम आता है और उसे कोई चुरा भी नहीं सकता। शिक्षा ही मानव को विद्वान और बड़ा आदमी बनाती है, इसलिए सबसे बड़ा धन “विद्या” ही है।”

कहानी से शिक्षा :

इस कहानी से हमे यह शिक्षा मिलती है जी जीवन मे सबसे बड़ा धन शिक्षा एवं ज्ञान है । अच्छी शिक्षा के द्वारा जो चाहे वो पाया जा सकता है । लेकिन धन एक ऐसी चीज है जिसका उपयोग समझदारी से अगर नहीं किया गया तो ये खत्म हो सकता है ।

2. बुद्धिमान साधु की कहानी : Short Stories in Hindi for Kids

किसी राजमहल के द्वारा पर एक साधु आया और द्वारपाल से बोला कि भीतर जाकर राजा से कहे कि उनका भाई आया है।

द्वारपाल ने समझा कि शायद ये कोई दूर के रिश्ते में राजा का भाई हो जो संन्यास लेकर साधुओं की तरह रह रहा हो!

सूचना मिलने पर राजा मुस्कुराया और साधु को भीतर बुलाकर अपने पास बैठा लिया।

साधु ने पूछा – कहो अनुज, क्या हाल-चाल हैं तुम्हारे?

“मैं ठीक हूँ आप कैसे हैं भैया?”, राजा बोला।

साधु ने कहा- जिस महल में मैं रहता था, वह पुराना और जर्जर हो गया है। कभी भी टूटकर गिर सकता है। मेरे 32 नौकर थे वे भी एक-एक करके चले गए। पाँचों रानियाँ भी वृद्ध हो गयीं और अब उनसे को काम नहीं होता…

यह सुनकर राजा ने साधु को 10 सोने के सिक्के देने का आदेश दिया।

साधु ने 10 सोने के सिक्के कम बताए।

तब राजा ने कहा, इस बार राज्य में सूखा पड़ा है, आप इतने से ही संतोष कर लें।

साधु बोला- मेरे साथ सात समुन्दर पार चलो वहां सोने की खदाने हैं। मेरे पैर पड़ते ही समुद्र सूख जाएगा… मेरे पैरों की शक्ति तो आप देख ही चुके हैं।

अब राजा ने साधु को 100 सोने के सिक्के देने का आदेश दिया।

साधु के जाने के बाद मंत्रियों ने आश्चर्य से पूछा, “ क्षमा करियेगा राजन, लकिन जहाँ तक हम जानते हैं आपका कोई बड़ा भाई नहीं है, फिर आपने इस ठग को इतना इनाम क्यों दिया?”

राजन ने समझाया, “ देखो, भाग्य के दो पहलु होते हैं। राजा और रंक। इस नाते उसने मुझे भाई कहा।

जर्जर महल से उसका आशय उसके बूढ़े शरीर से था… 32 नौकर उसके दांत थे और 5 वृद्ध रानियाँ, उसकी 5 इन्द्रियां हैं।

समुद्र के बहाने उसने मुझे उलाहना दिया कि राजमहल में उसके पैर रखते ही मेरा राजकोष सूख गया…क्योंकि मैं उसे मात्र दस सिक्के दे रहा था जबकि मेरी हैसियत उसे सोने से तौल देने की है। इसीलिए उसकी बुद्धिमानी से प्रसन्न होकर मैंने उसे सौ सिक्के दिए और कल से मैं उसे अपना सलाहकार नियुक्त करूँगा।

कहानी से शिक्षा

बच्चों इस कहानी से हमें ये सीख मिलती है कि किसी व्यक्ति के बाहरी रंग रूप से उसकी बुद्धिमत्ता का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता इसलिए हमें सिर्फ इसलिए कि किसी ने खराब कपडे पहने हैं या वो देखने में अच्छा नहीं है; उसके बारे में गलत विचार नहीं बनाने चाहियें।

3. बाज की सीख | शिकारी और बाज की कहानी | Short Stories in Hindi for Kids

एक बार एक शिकारी जंगल में शिकार करने के लिए गया। बहुत प्रयास करने के बाद उसने जाल में एक बाज पकड़ लिया।

शिकारी जब बाज को लेकर जाने लगा तब रास्ते में बाज ने शिकारी से कहा, “तुम मुझे लेकर क्यों जा रहे हो?”

शिकारी बोला, “ मैं तुम्हे मारकर खाने के लिए ले जा रहा हूँ।”

बाज ने सोचा कि अब तो मेरी मृत्यु निश्चित है। वह कुछ देर यूँही शांत रहा और फिर कुछ सोचकर बोला, “देखो, मुझे जितना जीवन जीना था मैंने जी लिया और अब मेरा मरना निश्चित है, लेकिन मरने से पहले मेरी एक आखिरी इच्छा है।”

“बताओ अपनी इच्छा?”, शिकारी ने उत्सुकता से पूछा।

बाज ने बताना शुरू किया-

मरने से पहले मैं तुम्हें दो सीख देना चाहता हूँ, इसे तुम ध्यान से सुनना और सदा याद रखना।

पहली सीख तो यह कि किसी कि बातों का बिना प्रमाण, बिना सोचे-समझे विश्वास मत करना।

और दूसरी ये कि यदि तुम्हारे साथ कुछ बुरा हो या तुम्हारे हाथ से कुछ छूट जाए तो उसके लिए कभी दुखी मत होना।

शिकारी ने बाज की बात सुनी और अपने रस्ते आगे बढ़ने लगा।

कुछ समय बाद बाज ने शिकारी से कहा- “ शिकारी, एक बात बताओ…अगर मैं तुम्हे कुछ ऐसा दे दूँ जिससे तुम रातों-रात अमीर बन जाओ तो क्या तुम मुझे आज़ाद कर दोगे?”

शिकारी फ़ौरन रुका और बोला, “ क्या है वो चीज, जल्दी बताओ?”

बाज बोला, “ दरअसल, बहुत पहले मुझे राजमहल के करीब एक हीरा मिला था, जिसे उठा कर मैंने एक गुप्त स्थान पर रख दिया था। अगर आज मैं मर जाऊँगा तो वो हीरा ऐसे ही बेकार चला जाएगा, इसलिए मैंने सोचा कि अगर तुम उसके बदले मुझे छोड़ दो तो मेरी जान भी बच जायेगी और तुम्हारी गरीभी भी हमेशा के लिए मिट जायेगी।”

यह सुनते ही शिकारी ने बिना कुछ सोचे समझे बाज को आजाद कर दिया और वो हीरा लाने को कहा।

बाज तुरंत उड़ कर पेड़ की एक ऊँची साखा पर जा बैठा और बोला, “ कुछ देर पहले ही मैंने तुम्हे एक सीख दी थी कि किसी के भी बातों का तुरंत विश्वास मत करना लेकिन तुमने उस सीख का पालन नही किया…दरअसल, मेरे पास कोई हीरा नहीं है और अब मैं आज़ाद हूँ।

यह सुनते ही शिकारी मायूस हो पछताने लगा…तभी बाज फिर बोला, तुम मेरी दूसरी सीख भूल गए कि अगर कुछ तुम्हारे साथ कुछ बुरा हो तो उसके लिए तुम कभी पछतावा मत करना।

कहानी से शिक्षा

बच्चों इस कहानी से हमें ये सीख मिलती है कि हमे किसी अनजान व्यक्ति पर आसानी से विश्वास नहीं करना चाहिए और किसी प्रकार का नुक्सान होने या असफलता मिलने पर दुखी नहीं होना चाहिए, बल्कि उस बात से सीख लेकर भविष्य में सतर्क रहना चाहिए।

4. पेड़ का रहस्य | Short Stories for kids.

शहर के बाहरी हिस्से में मल्टी नेशनल कम्पनी में काम करने वाले एक सेल्स मैनेजर नवीन अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ रहते थे। वह रोज सुबह काम पर निकल जाते और देर शाम को घर लौटते।

एक बार कुछ चोरों ने मैनेजर के घर में चोरी करने का मन बनाया। चोरी करने के दो-चार दिन पहले से ही वे उनके घर के आस-पास चक्कर लगाने लगे और उनकी गतिविधियों पर नज़र रखने लगे।

एक दिन चोरों ने एक अजीब सी चीज देखी। मैनेजर साहब जब शाम को लौटे तो वह घर में घुसने से पहले बागीचे में लगे आम के पेड़ के पास जाकर खड़े हो गए। उसके बाद उन्होंने अपने बैग में से एक-एक करके कुछ निकाला और पेड़ में कहीं डाल दिया। चूँकि उनकी पीठ चोरों की तरफ थी इसलिए वे ठीक से देख नहीं पाए कि आखिर मैनेजर ने क्या निकाला और कहाँ डाला।

खैर! इतना देख लेना ही चोरों के लिए काफी था। उनकी आँखें चमक गयीं; उन्होंने सोचा कि ज़रूर मैनेजर ने वहां कोई कीमती चीज या पैसे छुपाये होंगे।

मैनेजर के अन्दर जाते ही चोर थोड़ा और अँधेरा होने का इंतज़ार करने लगे और जब उन्हें तसल्ली हो गयी कि मैनेजर साहब खा-पीकर सो गए हैं तो वे धीरे से बाउंड्री कूद कर उनके घर में दाखिल हुए।

बिना समय गँवाए वे आम के पेड़ के पास गए और मैनेजर साहब की छिपाई चीज ढूँढने लगे। चोर हैरान थे, बहुत खोजने पर भी उन्हें वहां कुछ नज़र नहीं आ रहा था..वे समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर मैनेजर ने किस चतुराई से चीजें छिपाई हैं कि इतने शातिर चोरों के खोजने पर भी वे नहीं मिल रही हैं!

अंत में हार मान कर चोर वहां से चले गए। अगले दिन वे फिर छिपकर मैनेजर के ऑफिस से लौटने का इंतज़ार करने लगे।

रोज की तरह मैनेजर साहब देरी से घर लौटे। आज भी वे घर में घुसने से पहले उसी आम के पेड़ के पास गए और अपने बैग से कुछ चीजें निकाल कर उसमे डाल दी।

एक बार फिर चोर सबके सो जाने पर पेड़ के पास गए और जी-जान से खोजबीन करने लगे। पर आज भी उनके हाथ कुछ नहीं लगा।

अब चोरों को कीमती सामान से अधिक ये जानने की जिज्ञासा होने लगी कि आखिर वो मैनेजर किस तरह से चीजों को छिपता है कि लाख ढूँढने पर भी वो नहीं मिलतीं।

अपनी इसी जिज्ञासा को शांत करने के लिए वे सन्डे की सुबह शरीफों की तरह तैयार हो कर मैनेजर साहब से मिलने पहुंचे।

उनका लीडर बोला, “ सर, देखिये बुरा मत मानियेगा…दरअसल हम लोग चोर हैं! हम लोग कई दिन से आपके मकान में चोरी करने का प्लान बना रहे थे..लेकिन जब एक दिन हमने देखा कि आप ऑफिस से लौट कर आम के पेड़ में कुछ छुपा रहे हैं तो हमे लगा कि बस काम हो गया…हम आराम से आपकी छुपायी चीज लेकर गायब हो जायेंगे और चोरी का माल आपस में बाँट लंगे…पर पिछली दो रात हम सोये नहीं और सारी कोशिशें करके देख लीं कि वो चीजें हमें मिल जाएं; पर अब हम हार मान चुके हैं…कृपया आप ही हमें इस पेड़ का रहस्य बता दें!”

उनकी बात सुनकर मैनेजर साहब जोर से हँसे और बोले, “अरे भाई! मैं वहां कुछ नहीं छिपाता!”

“फिर आप रोज शाम को बैग से निकाल कर वहां क्या डालते हैं?”, लीडर ने आश्चर्य से पूछा।

“देखो!”, मैनेजर साहब गंभीर होते हुए बोले, “ मैं एक प्राइवेट जॉब में हूँ…वो भी सेल्स की…मेरे काम में इतना प्रेशर होता है, इतनी स्ट्रेस होती है कि तुम लोग उसका अंदाजा भी नहीं लगा सकते! रोज किसी नाराज़ कस्टमर के ताने सहने पड़ते हैं…रोज सेल्स टारगेट को लेकर बॉस क्लास लगाता है…रोज ऑफिस पॉलिटिक्स के कारण दिमाग खराब होता है…मैं नहीं चाहता कि इन सब निगेटिव बातों का असर मेरे प्यारे बच्चों और परिवार पर पड़े! इसलिए जब मैं शाम को इन तमाम चीजों को लेकर लौटता हूँ तो घर में घुसने से पहले मैं इन्हें एक-एक करके इस आम के पेड़ पर टांग देता हूँ…और कमाल की बात ये है कि जब मैं अगली सुबह इन चीजों को पेड़ से उठाने आता हूँ तो आधी तो पहले ही गायब हो चुकी होती हैं, यानी मैं उन्हें भूल चुका होता हूँ…और जो बचती हैं मैं उन्हें अपने साथ लेता जाता हूँ…”

चोर अब पेड़ का रहस्य समझ चुके थे; वे चोरी में तो कामयाब नहीं हुए लेकिन आज एक बड़ी सीख लेकर घर लौट रहे थे!

दोस्तों, ना जाने क्यों इंसान अपनी जिंदगी को खुद ही कठिन बनाता चला जा रहा है। पहले के लोग जहाँ सुख-सुविधाओं के कम होने पर भी खुश रहते थे…tension free रहते थे, आज सब कुछ होने पर भी हम एक दवाब भरी जिंदगी जी रहे हैं। इस अवस्था को रातों-रात बदला तो नहीं जा सकता पर एक काम जो हम तुरंत कर सकते हैं वो है अपनी स्ट्रेस का असर अपने परिवार पे ना पड़ने देना।

कहानी से शिक्षा:

जीवन में ऑफिस कार्य और घर का संतुलन होना बहुत जरूरी है. मनुष्य को दोनों जगह के दायित्व को निभाना पड़ता है .ऑफिस ki बातों को ऑफिस में रहने दे .शायद पेड़ का ये रहस्य आपको इस बात को अमल करने में मदद करे! तो चलिए, अपने आप से एक वादा करिए कि आज से आप भी बाहर की तकलीफ को घर में प्रवेश नहीं करने देंगे और ना ही उसका असर अपने व्यवहार पर आने देंगे…आज से आप भी अपनी नकारात्मकता को घर के बाहर कहीं टांग आयेंगे!

5. तीसरी बकरी

रोहित और मोहित बड़े शरारती बच्चे थे, दोनों 5th स्टैण्डर्ड के स्टूडेंट थे और एक साथ ही स्कूल आया-जाया करते थे।

एक दिन जब स्कूल की छुट्टी हो गयी तब मोहित ने रोहित से कहा, “ दोस्त, मेरे दिमाग में एक आईडिया है?”

“बताओ-बताओ…क्या आईडिया है ?”, रोहित ने एक्साईटेड होते हुए पूछा।

मोहित- “वो देखो, सामने तीन बकरियां चर रही हैं।”

रोहित- “ तो! इनसे हमे क्या लेना-देना है?”

मोहित-” हम आज सबसे अंत में स्कूल से निकलेंगे और जाने से पहले इन बकरियों को पकड़ कर स्कूल में छोड़ देंगे, कल जब स्कूल खुलेगा तब सभी इन्हें खोजने में अपना समय बर्वाद करेगे और हमें पढाई नहीं करनी पड़ेगी…”

रोहित- “पर इतनी बड़ी बकरियां खोजना कोई कठिन काम थोड़े ही है, कुछ ही समय में ये मिल जायेंगी और फिर सबकुछ नार्मल हो जाएगा….”

मोहित- “हाहाहा…यही तो बात है, वे बकरियां आसानी से नहीं ढूंढ पायेंगे, बस तुम देखते जाओ मैं क्या करता हूँ!”

इसके बाद दोनों दोस्त छुट्टी के बाद भी पढ़ायी के बहाने अपने क्लास में बैठे रहे और जब सभी लोग चले गए तो ये तीनो बकरियों को पकड़ कर क्लास के अन्दर ले आये।

अन्दर लाकर दोनों दोस्तों ने बकरियों की पीठ पर काले रंग का गोला बना दिया। इसके बाद मोहित बोला, “अब मैं इन बकरियों पे नंबर डाल देता हूँ।, और उसने सफेद रंग से नंबर लिखने शुरू किये-

पहली बकरी पे नंबर 1
दूसरी पे नंबर 2
और तीसरी पे नंबर 4

“ये क्या? तुमने तीसरी बकरी पे नंबर 4 क्यों डाल दिया?”, रोहित ने आश्चर्य से पूछा।

मोहित हंसते हुए बोला, “ दोस्त यही तो मेरा आईडिया है, अब कल देखना सभी तीसरी नंबर की बकरी ढूँढने में पूरा दिन निकाल देंगे…और वो कभी मिलेगी ही नहीं…”

अगले दिन दोनों दोस्त समय से कुछ पहले ही स्कूल पहुँच गए।

थोड़ी ही देर में स्कूल के अन्दर बकरियों के होने का शोर मच गया।

कोई चिल्ला रहा था, “ चार बकरियां हैं, पहले, दुसरे और चौथे नंबर की बकरियां तो आसानी से मिल गयीं…बस तीसरे नंबर वाली को ढूँढना बाकी है।”

स्कूल का सारा स्टाफ तीसरे नंबर की बकरी ढूढने में लगा गया…एक-एक क्लास में टीचर गए अच्छे से तालाशी ली। कुछ खोजू वीर स्कूल की

छतों पर भी बकरी ढूंढते देखे गए… कई सीनियर बच्चों को भी इस काम में लगा दिया गया।

तीसरी बकरी ढूँढने का बहुत प्रयास किया गया….पर बकरी तब तो मिलती जब वो होती…बकरी तो थी ही नहीं!

आज सभी परेशान थे पर रोहित और मोहित इतने खुश पहले कभी नहीं हुए थे। आज उन्होंने अपनी चालाकी से एक बकरी अदृश्य कर दी थी।

कहानी से शिक्षा

दोस्तों, इस कहानी को पढ़कर चेहरे पे हलकी सी मुस्कान आना स्वाभाविक है। पर इस मुस्कान के साथ-साथ हमें इसमें छिपे सन्देश को भी ज़रूर समझना चाहिए। तीसरी बकरी, दरअसल वो चीजें हैं जिन्हें खोजने के लिए हम बेचैन हैं पर वो हमें कभी मिलती ही नहीं….क्योंकि वे हकीकत में होती ही नहीं!

हम ऐसी लाइफ चाहते हैं जो पूर्ण हो, जिसमे कोई समस्या ही ना हो…. लेकिन यह हो नहीं सकता
हम ऐसा हमसफ़र चाहते हैं जो हमें पूरी तरह समझे जिसके साथ कभी हमारी अनबन ना हो…..लेकिन यह हो नहीं सकता !
हम ऐसी नौकरी या बिजनेस चाहते हैं, जिसमे हमेशा सबकुछ एकदम आराम से चलता रहे…लेकिन यह हो नहीं सकता!

क्या ज़रूरी है कि हर वक़्त किसी चीज के लिए परेशान रहा जाए? ये भी तो हो सकता है कि हमारी लाइफ में जो कुछ भी है वही हमारे जीवन की पहेली को हल करने के लिए पर्याप्त हो….ये भी तो हो सकता है कि जिस तीसरी चीज की हम तलाश कर रहे हैं वो हकीकत में हो ही ना….और हम पहले से ही परिपूर्ण हों!

6. सर्व निंदक महाराज

एक थे सर्वनिंदक महाराज। काम-धाम कुछ आता नहीं था पर निंदा गजब की किया करते थे। हमेशा औरों के काम में टाँग फँसाते थे।

अगर कोई व्यक्ति मेहनत करके सुस्ताने भी बैठता तो कहते, ‘मूर्ख एक नम्बर का कामचोर है। अगर कोई काम करते हुए मिलता तो कहते, ‘मूर्ख जिंदगी भर काम करते हुए मर जायेगा।’

कोई पूजा-पाठ में रुचि दिखाता तो कहते, ‘पूजा के नाम पर देह चुरा रहा है। ये पूजा के नाम पर मस्ती करने के अलावा कुछ नहीं कर सकता।’ अगर कोई व्यक्ति पूजा-पाठ नहीं करता तो कहते, ‘मूर्ख नास्तिक है! भगवान से कोई मतलब ही नहीं है। मरने के बाद पक्का नर्क में जायेगा।’

माने निंदा के इतने पक्के खिलाड़ी बन गये कि आखिरकार नारदजी ने अपने स्वभाव अनुसार.. विष्णु जी के पास इसकी खबर पहुँचा ही दिया। विष्णु जी ने कहा ‘उन्हें विष्णु लोक में भोजन पर आमंत्रित कीजिए।’

नारद तुरंत भगवान का न्योता लेकर सर्वनिंदक महाराज के पास पहुँचे और बिना कोई जोखिम लिए हुए उन्हें अपने साथ ही विष्णु लोक लेकर पहुँच गये कि पता नहीं कब महाराज पलटी मार दे।

उधर, लक्ष्मी जी ने नाना प्रकार के व्यंजन अपने हाथों से तैयार कर सर्वनिंदक महाराज को परोसा। सर्वनिंदक जी ने जमकर हाथ साफ किया। वे बड़े प्रसन्न दिख रहे थे। विष्णु जी को पूरा विश्वास हो गया कि सर्वनिंदक जी लक्ष्मी जी के बनाये भोजन की निंदा कर ही नहीं सकते। फिर भी नारद जी को संतुष्ट करने के लिए पूछ लिया, और महाराज भोजन कैसा लगा?

सर्वनिंदक जी बोले, महाराज भोजन का तो पूछिए मत, आत्मा तृप्त हो गयी। लेकिन… भोजन इतना भी अच्छा नहीं बनना चाहिए कि आदमी खाते-खाते प्राण ही त्याग दे।

विष्णु जी ने माथा पीट लिया और बोले, ‘हे वत्स, निंदा के प्रति आपका समर्पण देखकर मैं प्रसन्न हुआ। आपने तो लक्ष्मी जी को भी नहीं छोडा़, वर माँगो।

सर्वनिंदक जी ने शर्माते हुए कहा — हे प्रभु मेरे वंश में वृद्धि होनी चाहिए।

तभी से ऐसे निरर्थक सर्वनिंदक हमारे आसपास ही नहीं वरन सभी जगहों में पाए जाने लगे..।

कहानी से शिक्षा

हम चाहे कुछ भी कर लें.. इन सर्वनिंदकों की प्रजाति को संतुष्ट नहीं कर सकते!अतः ऐसे लोगों की परवाह किये बिना अपने कर्तव्य पथ पर हमें अग्रसर रहना चाहिए।

7. छुटकी

गाँव के स्कूल में पढने वाली छुटकी आज बहुत खुश थी, उसका दाखिला शहर के एक अच्छे स्कूल में क्लास 6 में हो गया था।

आज स्कूल का पहला दिन था और वो समय से पहले ही तैयार हो कर बस का इंतज़ार कर रही थी। बस आई और छुटकी बड़े उत्साह के साथ उसमे सवार हो गयी।

करीब 1 घंटे बाद जब बस स्कूल पहुंची तो सारे बच्चे उतर कर अपनी-अपनी क्लास में जाने लगे…छुटकी भी बच्चों से पूछते हुए अपनी क्लास में पहुंची।

क्लास के बच्चे गाव से आई इस लडकी को देखकर उसका मजाक उड़ाने आगे।

“साइलेंस!”, टीचर बोली, “ चुप हो जाइए आप सब…”

“ये छुटकी है, और आज से ये आपके साथ ही पढेगी।”

उसके बाद टीचर ने बच्चों को सरप्राइज टेस्ट के लिए तैयार होने को कह दिया।

“चलिए, अपनी-अपनी कॉपी निकालिए और जल्दी से “दुनिया के 7 आश्चर्य लिख डालिए।”, टीचर ने निर्देश दिया।

सभी बच्चे जल्दी जल्दी उत्तर लिखने लगे, छुटकी भी धीरे-धीरे अपना उत्तर लिखने लगी।

जब सबने अपनी कॉपी जमा कर दी तब टीचर ने छुटकी से पूछा, “क्या हुआ बेटा, आपको जितना पता है उतना ही लिखिए, इन बच्चों को तो मैंने कुछ दिन पहले ही दुनिया के सात आश्चर्य बताये थे।”

“जी, मैं तो सोच रही थी कि इतनी सारी चीजें हैं…इनमे से कौन सी सात चीजें लिखूं….”, छुटकी टीचर को अपनी कॉपी थमाते हुए बोली।

टीचर ने सबकी कापियां जोर-जोर से पढनी शुरू कीं..ज्यादातर बच्चों ने अपने उत्तर सही दिए थे…

ताजमहल
चीचेन इट्ज़ा
क्राइस्ट द रिडीमर की प्रतिमा
कोलोसियम
चीन की विशाल दीवार
माचू पिच्चू
पेत्रा
टीचर खुश थीं कि बच्चों को उनका पढ़ाया याद था। बच्चे भी काफी उत्साहित थे और एक दुसरे को बधाई दे रहे थे…

अंत में टीचर ने छुटकी की कॉपी उठायी, और उसका उत्तर भी सबके सामने पढना शुरू किया….

दुनिया के 7 आश्चर्य हैं:

देख पाना
सुन पाना
किसी चीज को महसूस कर पाना
हँस पाना
प्रेम कर पाना
सोच पाना
दया कर पाना
छुटकी के उत्तर सुन पूरी क्लास में सन्नाटा छा गया। टीचर भी आवाक खड़ी थी….आज गाँव से आई एक बच्ची ने उन सभी को भगवान् के दिए उन अनमोल तोहफों का आभाष करा दिया था जिनके तरफ उन्होंने कभी ध्यान ही नहीं दिया था!

सचमुच , गहराई से सोचा जाए तो हमारी ये देखने…सुनने…सोचने…समझने… जैसी शक्तियां किसी आश्चर्य से कम नहीं हैं, ऐसे में ये सोच कर दुखी होने ने कि बजाये कि हमारे पास क्या नहीं है हमें ईश्वर के दिए इन अनमोल तोहफों के लिए शुक्रगुजार होना चाहिए और जीवन की छोटी-छोटी बातों में छिपी खुशियों को मिस नहीं करना चाहिए।

8. संघर्ष

एक आदमी हर रोज सुबह बगीचे में टहलने जाता था। एक बार उसने बगीचे में एक पेड़ की टहनी पर एक तितली का कोकून (छत्ता) देखा। अब वह रोजाना उसे देखने लगा। एक दिन उसने देखा कि उस कोकून में एक छोटा सा छेद हो गया है। उत्सुकतावश वह उसके पास जाकर बड़े ध्यान से उसे देखने लगा। थोड़ी देर बाद उसने देखा कि एक छोटी तितली उस छेद में से बाहर आने की कोशिश कर रही है लेकिन बहुत कोशिशो के बाद भी उसे बाहर निकलने में तकलीफ हो रही है। उस आदमी को उस पर दया आ गयी। उसने उस कोकून का छेद इतना बड़ा कर दिया कि तितली आसानी से बाहर निकल जाये | कुछ समय बाद तितली कोकून से बाहर आ गयी लेकिन उसका शरीर सूजा हुआ था और पंख भी सूखे पड़े थे। आदमी ने सोचा कि तितली अब उड़ेगी लेकिन सूजन के कारण तितली उड़ नहीं सकी और कुछ देर बाद मर गयी।

दरअसल भगवान ने ही तितली के कोकून से बाहर आने की प्रक्रिया को इतना कठिन बनाया है जिससे की संघर्ष करने के दौरान तितली के शरीर पर मौजूद तरल उसके पंखो तक पहुँच सके और उसके पंख मजबूत होकर उड़ने लायक बन सकें और तितली खुले आसमान में उडान भर सके। यह संघर्ष ही उस तितली को उसकी क्षमताओं का एहसास कराता है।

कहानी से शिक्षा

यही बात हम पर भी लागू होती है। मुश्किलें, समस्यायें हमें कमजोर करने के लिए नहीं बल्कि हमें हमारी क्षमताओं का एहसास कराकर अपने आप को बेहतर बनाने के लिए हैं अपने आप को मजबूत बनाने के लिए हैं।

इसलिए जब भी कभी आपके जीवन में मुश्किलें या समस्यायें आयें तो उनसे घबरायें नहीं बल्कि डट कर उनका सामना करें। संघर्ष करते रहें तथा नकारात्मक विचार त्याग कर सकारात्मकता के साथ प्रयास करते रहें। एक दिन आप अपने मुश्किल रूपी कोकून से बाहर आयेंगे और खुले आसमान में उडान भरेंगे अर्थात आप जीत जायेंगे।आप सभी मुश्किलों, समस्यायों पर विजय पा लेंगे।

9. एक चुटकी ईमानदारी

रामू काका अपनी ईमानदारी और नेक स्वाभाव के लिए पूरे गाँव में प्रसिद्द थे। एक बार उन्होंने अपने कुछ मित्रों को खाने पर आमंत्रित किया। वे अक्सर इस तरह इकठ्ठा हुआ करते और साथ मिलकर अपनी पसंद का भोजन बनाते।

आज भी सभी मित्र बड़े उत्साह से एक दुसरे से मिले और बातों का दौर चलने लगा।

जब बात खाने को लेकर शुरू हुई तभी काका को एहसास हुआ कि नमक तो सुबह ही ख़त्म हो गया था।

काका नमक लाने के लिए उठे फिर कुछ सोच कर अपने बेटे को बुलाया और हाथ में कुछ पैसे रखते हुए बोले, “ बेटा, जा जरा बाज़ार से एक पुड़िया नमक लेता आ..”

“जी पिताजी।”, बेटा बोला और आगे बढ़ने लगा।

“सुन”, काका बोले, “ ये ध्यान रखना कि नमक सही दाम पे खरीदना, ना अधिक पैसे देना और ना कम।”

बेटे को आश्चर्य हुआ, उसने पूछा, “पिताजी, अधिक दाम में ना लाना तो समझ में आता है, लेकिन अगर कुह मोल भाव करके मैं कम पैसे में नामक लाता हूँ और चार पैसे बचाता हूँ तो इसमें हर्ज़ ही क्या है?”

“नहीं बेटा,” काका बोले, “ ऐसा करना हमारे गाँव को बर्वाद कर सकता है! जा उचित दाम पे नामक लेकर आ।”

काका के मित्र भी ये सारी बात सुन रहे थे, किसी ने बोला, “ भाई, तेरी ये बात समझ ना आई, कम दाम पे नमक लेने से अपना गाँव कैसे बर्वाद हो जाएगा?”,

काका बोले, “ सोचो कोई नमक कम दाम पे क्यों बेचेगा, तभी न जब उसे पैसों की सख्त ज़रूरत हो। और जो कोई भी उसकी इस स्थिति का फायदा उठाता है वो उस मजदूर का अपमान करता है जिसने पसीना बहा कर..कड़ी मेहनत से नमक बनाया होगा”

“लेकिन इतनी सी बात से अपना गाँव कैसे बर्वाद हो जाएगा?”, मित्रों ने हँसते हुए कहा।

“देखो मित्रों, शुरू में समाज के अन्दर कोई बेईमानी नहीं थी, लेकिन धीरे-धीरे हम लोग इसमें एक-एक चुटकी बेईमानी डालते गए और सोचा कि इतने से क्या होगा, पर खुद ही देख लो हम कहाँ पहुँच गए हैं… आज हम एक चुटकी ईमानदारी के लिए तरस रहे हैं!”

कहानी से शिक्षा

अपनी जिंदगी में हम बहुत बार ऐसा व्यवहार करते हैं जो हम भी अन्दर से जानते हैं कि वो गलत है। पर फिर हम ये सोच कर कि “इससे क्या होगा!”, अपने आप को समझा लेते हैं और गलत काम कर बैठते हैं और इस तरह समाज में अपने हिस्से की बेईमानी डाल देते हैं। चलिए, हम सब प्रयास करें कि ईमानदारी की बड़ी-बड़ी मिसाल कायम करने से पहले अपनी रोज-मर्रा की ज़िन्दगी में ईमानदारी घोलें और एक चुटकी बेईमानी को एक चुटकी ईमानदारी से ख़त्म करें!

10. सिकंदर का क्रोध

सिकंदर महान ने अपने रण कौशल से ग्रीस, इजिप्ट समेत उत्तर भारत तक अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था। सालों से युद्ध करती सिकंदर की सेना बहुत थक चुकी थी और अब वो अपने परिवारों के पास वापस लौटना चाहती थी। सिकंदर को भी अपने सैनिकों की इच्छा का सम्मान करना पड़ा और उसने भी भारत से लौटने का मन बना लिया।

पर जाने से पहले वह किसी ज्ञानी व्यक्ति को अपने साथ ले जाना चाहता था। स्थानीय लोगों से पूछने पर उसे एक पहुंचे हुए बाबा के बारे में पता चला जो कुछ दूरी पर स्थित एक नगर में रहते थे।

सिकंदर दल-बल के साथ वहां पहुंचा। बाबा निःवस्त्र एक पेड़ के नीचे ध्यान लगा कर बैठे थे। सिकंदर उनके ध्यान से बाहर आने का इंतज़ार करने लगा। कुछ देर बाद बाबा ध्यान से बाहर निकले और उनके आँखें खोलते ही सैनिक ” सिकंदर महान – सिकंदर महान ” के नारे लगाने लगे।

बाबा अपने स्थान पर बैठे उन्हें ऐसा करते देख मुस्कुरा रहे थे।

सिकंदर उनके सामने आया और बोला , ” मैं आपको अपने देश ले जाना चाहता हूँ। चलिए हमारे साथ चलने के लिए तैयार हो जाइये। “

बाबा बोले, ” मैं तो यहीं ठीक हूँ , मैं यहाँ से कहीं नहीं जाना चाहता , मैं जो चाहता हूँ सब यहीं उपलब्ध है , तुम्हे जहाँ जाना है जाओ। “

एक मामूली से संत का यह जवाब सुनकर सिकंदर के सैनिक भड़क उठे। भला इतने बड़े राजा को कोई मना कैसे कर सकता था।

सिकंदर ने सैनिकों को शांत करते हुए बाबा से कहा , ” मैं ‘ना’ सुनने का आदि नहीं हूँ , आपको मेरे साथ चलना ही होगा। “

बाबा बिना घबराये बोले , ” यह मेरा जीवन है और मैं ही इसका फैसला कर सकता हूँ कि मुझे कहाँ जाना है और कहाँ नहीं !”

यह सुन सिकंदर गुस्से से लाल हो गया उसने फ़ौरन अपनी तलवार निकाली और बाबा के गले से सटा दी , ” अब क्या बोलते हो , मेरे साथ चलोगे या मौत को गले लगाना चाहोगे ??”

बाबा अब भी शांत थे , ” मैं तो कहीं नहीं जा रहा , अगर तुम मुझे मारना चाहते हो तो मार दो , पर आज के बाद से कभी अपने नाम के साथ “महान” शब्द का प्रयोग मत करना , क्योंकि तुम्हारे अंदर महान होने जैसी कोई बात नहीं है … तुम तो मेरे गुलाम के भी गुलाम हो !!”

सिकंदर अब और भी क्रोधित हो उठा, भला दुनिया जीतने वाले इतने बड़े योद्धा को एक निर्बल – निःवस्त्र , व्यक्ति अपने गुलाम का भी गुलाम कैसे कह सकता था।

” तुम्हारा मतलब क्या है ?”, सिकंदर क्रोधित होते हुए बोला।

बाबा बोले, ” क्रोध मेरा गुलाम है , मैं जब तक नहीं चाहता मुझे क्रोध नहीं आता , लेकिन तुम अपने क्रोध के गुलाम हो , तुमने बहुत से योद्धाओं को पराजित किया पर अपने क्रोध से नहीं जीत पाये , वो जब चाहता है तुम्हारे ऊपर सवार हो जाता है, तो बताओ…हुए ना तुम मेरे गुलाम के गुलाम। “

सिकंदर बाबा की बातें सुनकर स्तब्ध रह गया। वह उनके सामने नतमस्तक हो गया और अपने सैनिकों के साथ वापस लौट गया।

कहानी से शिक्षा

मित्रों , हम जितनी बार गुस्सा होते हैं , उतनी बार हमारे शरीर में एसिड बनता है।क्या हम यह नहीं जानते कि एसिड जिस बर्तन में होता है उसे नष्ट कर देता है। ” सच ही तो है गुस्से का सबसे बड़ा शिकार खुद गुस्सा करने वाला ही होता है। आइये इस प्रेरणादायक कहानी से सीख लेते हुए हम अपने गुस्से को काबू में करने का प्रयास करें।

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