ग़ज़ल संग्रह 2022

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कवि शिव नारायण “शिव” की कविताए ।

1. कोई बात ये    कहने वाला नहीं है.

कोई बात ये    कहने वाला नहीं है.

गरीबों के घर में    निवाला नहीं है.

जुदा हो गयी  हैं भले  अपनी राहे.

तुझे अपने दिल से निकाला नहीं है.

भला ही किया है सदा जिन्दगी में, 

किसी पे बुरी नज्र    डाला नहीं है.

ये जाकर समाचार सूरज को दे दो

मेरी इस गली में     उजाला नहीं है, 

ये दावा है मेरा कि घर में भी अपने, 

किसी शख्स का हाथ काला नहीं है.

यहाँ नफरतों के     हैं कालेज सारे, 

कहीं प्यार की    पाठशाला नहीं है.

कोई खास अपना हो या अजनबी हो, 

किसे दुख में मैंने    संभाला नहीं है

2. जब से उनसे मुहब्बत हुई | जिन्दगी खूबसूरत हुई ||

जब से उनसे     मुहब्बत हुई.
जिन्दगी       खूबसूरत    हुई, 

मन दिया तन दिया धन दिया, 
जब उन्हें जो      जरूरत हुई.
दुख में सुख में हर इक हाल में, 
सिर्फ हंसने   की    आदत हुई.

एक पल     की  खुशी के लिए, 
पत्थरों         की    इबादत हुई.
बात   अपनी         सुनाऊँ उन्हें, 
पर न   इतनी   भी   हिम्मत हुई.

आप का    साथ जब मिल गया, 
फिर किसी    की   न चाहत हुई.
साथ पहले         भी धोखे हुए, 

आज भी        तो शरारत    हुई

3. दिलवरों की डगर ढूढ़ते रह गये. आज पूरा शहर ढूढ़ते रह गये.

 ग़ज़ल

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दिलवरों   की  डगर     ढूढ़ते रह गये.
आज पूरा        शहर    ढूढ़ते रह गये

रोटियां तो मिली      पेट भर भी गया, 
मुख्तसर    एक    घर ढूढ़ते   रह गये.

लोग उल्फत   के    मेरी   दिवाने  हुए, 
आप की हम        नजर ढूढ़ते रह गये,

सबको रस्ते मिले सबको मंजिल मिली, 
और हम      हमसफर    ढूढ़ते रह गये.

इस तरफ उस तरफ  सुब्ह से शाम तक, 
हम तेरी       रहगुज़र  ढूढ़ते     रह गये.

जख्मेदिल को    तसल्ली  सुकूँ दे सके, 
एक ऐसा बशर        ढूढ़ते       रह गये.

जो नदी प्यास  सबकी    बुझाती रही, 
आज उसकी लहर     ढूढ़ते    रह गये.

शिव नारायण शिव
12-10-21

4. ग़ज़ल दोस्तों से मुलाकात होती नहीं. चाह कर भी कोई बात होती नहीं

दोस्तों से मुलाकात होती नहीं.

चाह कर भी कोई बात होती नहीं.

सोचता हूँ ग़ज़ल गुनगुनाऊँ कोई,

 रात होती है वह रात होती नहीं.

5. मुक्तक ग़ज़ल रफ्ता-रफ्ता गुजर सी गयी जिन्दगी

रफ्ता-रफ्ता  गुजर सी गयी जिन्दगी.

पर लगे अब   ठहर सी गयी जिन्दगी.

दिन ब दिन और सूरत बिगड़ती गयी, 

हम तो समझे संवर सी गयी जिन्दगी.

6. ग़ज़ल लोग खुद से ही धोखा किये. आंधियों पर भरोसा किये.

 ग़ज़ल

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लोग खुद से ही धोखा किये.

आंधियों पर    भरोसा किये.

धूल खिड़की   से आती रही, 

घर में कितना ही परदा किये.

वो     बुरा ही    समझते रहे, 

हम तो अच्छे से अच्छा किये.

लफ्ज कड़वे ही निकले सदा, 

यूँ बहुत   मुंह को मीठा किये.

वह जहन       से उतरता रहा, 

हम जिसे रोज      देखा किये.

प्यार का   कोष    बढ़ता गया, 

जब कि दिल खोल खर्चा किये.

वो निगाहें        मिलाते   नहीं, 

जो थे उल्फत   का वादा किये.

शिव नारायण शिव

12-12-21

7. कदम कदम खतरे मिलते हैं. दूर दूर पहरे मिलते हैं

 ग़ज़ल
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कदम कदम   खतरे मिलते हैं.
दूर दूर         पहरे    मिलते हैं.

मुफलिस के तो अब भी आंसू, 
पलकों में       ठहरे   मिलते हैं.

सुख के शजर   सभी मुरझाये, 
दुख के        हरे-भरे मिलते हैं.

जीवन पथ पर दुख के  दरिया, 
आखिर क्यूँ     गहरे मिलते हैं.

किससे बात      करोगे जो भी, 
मिलते हैं          बहरे मिलते हैं.

अब फूलों         के बाजारों में, 
कागज के       गजरे मिलते हैं.

कल तक नाज रहा है जिनको,

वो चेहरे     उतरे       मिलते हैं, 

शिव नारायण शिव
10-9-21

8. फूल छुओ तो ख़ार लगे है | जहर सरीखा प्यार लगे है ||

 ग़ज़ल

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फूल छुओ तो ख़ार लगे है.

जहर सरीखा प्यार लगे है.

गली   गली  रस्ते रस्ते पर. 

खतरों का  अम्बार लगे है.

झूठ   बोलती    है सच्चाई, 

लफ्ज़ लफ्ज़ अंगार लगे है.

माननीय की   सभा हमारे, 

कौओं का   दरबार लगे है.

पूजा घर     का आजू-बाजू, 

मछली  का    बाजार लगे है.

कोई     है   आंसू     में डूबा, 

और कोई       बीमार लगे है.

जिश्म तेरा पंखुड़ी कमल की, 

रूप तेरा        कचनार लगे है.

शिव नारायण शिव

26-8-21

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